लोकायुक्त ने पूर्व सिविल सर्जन के खिलाफ दर्ज किया केस -बिना टेंडर कंपनी से 3 साल कराया काम, 2 कर्मचारी भी थे शामिल

उज्जैन। लोकायुक्त ने शासन को आर्थिक क्षति पहुंचने और नियम विरूद्ध कंपनी के कार्याकाल की समयावधि बढ़ाकर काम करने के मामले में जिला अस्पताल और चरक भवन में सिविल सर्जन रहे डॉक्टर और 2 अधिनस्थ कर्मचारियों के खिलाफ बुधवार को भ्रष्टाचार अधिनियम के साथ षडयंत्र रचने का केस दर्ज किया है।
लोकायुक्त एसपी आनंद यादव ने बताया कि कुछ वर्ष पहले ग्राम नजरपुर में रहने वाले धर्मेन्द्र शर्मा ने कार्यालय आकर शिकायत दर्ज कराई थी कि शासकीय चरक अस्पताल के सफल संचालन के लिये समय-समय पर वस्तुओं और सेवाओं का क्रय किया जाता है। जिसमें नियम विरूद्ध काम कर शासन को आर्थिक हानि पहुंचाई गई है। शिकायत की जांच डीएसपी राजेश पाठक को सौंपी गई थी। लम्बी जांच के बाद पाया गया कि पूर्व सिविल सर्जन रहे डॉ. प्रयागनारायण शर्मा, सिविल सर्जन कार्यालय से जुड़े तत्कालीन लेखापाल राजकुमार सोनी और तत्काली प्रभारी लिपिक (मूल पद ड्रेसर)राहुल पंड्या ने मिली भगत कर शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाई है। जांच के दौरान सामने आया कि जिन फर्मों को दो वर्ष के लिए निविदा का कायार्देश दिया गया था उनकी समयावधि समाप्त होने के पश्चात तीन वर्ष तक बिना नई निविदा के कार्य करवाया गया। पुरानी फर्मो डेहली रेफ्रिजरेशन/ एयर कंडिशनिंग इंजिनियरिंग, इन्दौर एवं रिडेन एस.पी.सी. आॅक्सीजन गैस सप्लायर को जिला उज्जैन से ही कार्य करवाया जाकर उक्त फर्मो को अनुचित आर्थिक लाभ पहुंचाया गया। बिना प्रतिस्पर्धा की निविदा मूल्य से कार्य करवाये जाने के कारण शासन को आर्थिक क्षति हुई है। विभिन्न फर्मों को क्रय/कार्य के भुगतान के समय जी.एस.टी राशि का भुगतान भी किया गया था, जिसे संबंधित फर्मों द्वारा शासन पक्ष में जमा नही करवाया गया । इसके बावजूद बिना क्लेरिफिकेशन सर्टिफिकेट के नियम विरूद्ध रूप से पश्चातवर्ती भुगतान भी किया गया। तत्कालीन सिविल सर्जन जिला चिकित्सालय कार्यालय सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक उज्जैन (वर्तमान में सेवानिवृत्त) प्रदत्त वित्तीय शक्तियो के विपरीत, फर्मों को अत्याधिक राशि का भुगतान, बिना सक्षम अधिकारी के अनुमोदन प्राप्त किया गया है। प्रकरण में किये गये अनियमित भुगतान की कुल राशि का निर्धारण विवेचना के दौरान भुगतान का आॅडिट करवाकर किया जावेगा। लोकसेवकों द्वारा पदीय कदाचरण करते हुए विभिन्न फर्मों के संचालको से मिलकर, आपराधिक षडयंत्रपूर्वक प्रदत वित्तीय शक्तियों के विपरीत जाकर शासकीय राशि का नियम विरूद्ध भुगतान किया गया। शासन को हानि पहुंचाई। इसे लेकर सिविल सर्जन तत्कालीन और तत्कालीन प्रभारी लिपिक के विरूद्ध धारा 7-सी 13 (1) ए, 13 (2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 (संशोधन 2018) एवं भा.द.वि. की धारा 120 बी में प्रकरण दर्ज कर विवेचना में लिया गया है।

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